Tuesday, 3 March 2015

हद-ए-शहर से निकली तो गाँव गाँव चली। कुछ यादें मेरे संग पांव पांव चली। सफ़र जो धूप का किया तो तजुर्बा हुआ। वो जिंदगी ही क्या जो छाँव छाँव चली।।


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