मध्य प्रदेश में आठ सालों से सत्ता से वनवास काट रही कांग्रेस, दिग्गज नेताओं के प्रभाव और उनके परिवार मोह ने पार्टी की साख गंवाई है। विशेषकर तेरहवी विधानसभा के लिए हुये उपचुनाव में परिवारवाद के चलते कांग्रेस को अपनी ऐसी परपंरागत सीटें गंवानी पड़ी। जिन पर उसका आजादी के बाद लगभग कब्जा रहा है। पिछले तीन उपचुनाव हार चुकी कांग्रेस के सामने महेश्वर में अपनी नाक बचाने की चुनौती है। लेकिन पार्टी की आपसी कलह और परिवारवाद कांग्रेस को कहीं इस उपचुनाव में ले न डूबे। पार्टी ने महेश्वर से एक बार फिर साधौ पर दांव लगाया है। विजयलक्ष्मी साधौ के भाई देवेन्द्र साधौ पार्टी के झंडे तले चुनावी मैदान में है। लेकिन सवाल वहीं है कि कहीं कांग्रेस को ले न डूबे परिवारवाद।
मध्य प्रदेश में विधानसभा उपचुनावों में हार की हैट्रिक कर चुकी कांग्रेस के सामने अब अपनी नाक और पार्टी की साख बचाने की चुनौती है। मिशन 2013 की तैयारियों में लगी कांग्रेस की यह अग्निपरीक्षा है। पार्टी पिछले तीन उपचुनावों में अपनी परंपरागत सीटों से हाथ धो चुकी है। भाजपा ने बेहतर और कारगर रणनीति के जरिए कांग्रेसी किले ढहा दिये है और वह महेश्वर में भी कमल खिलाने के लिए जमीनी स्तर पर जुटी हुई है। तो वहीं महेश्वर में कांग्रेसी आपसी कलह और परिवारवाद के फेर में फंसे है। कई दिनों की माथापच्ची के बाद आखिरकार कांग्रेस हाईकमान ने महेश्वर के मैदान के लिए विजयलक्ष्मी साधौ के भाई देवेन्द्र साधौ को चुना है। हालांकि बुधवार देर रात तक दिल्ली दरबार में राष्ट्रीय सचिव और पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरूण यादव के समर्थक सुनील खांडे की मजबूत दावेदारी थी। लेकिन गुरूवार सुबह सोनिया गांधी के सचिव अहमद पटेल के हस्तक्षेप के बाद डॉक्टर विजयलक्ष्मी साधौ के भाई देवेन्द्र साधौ की दावेदारी पर पार्टी ने अपनी मुहर लगा दी।
उपचुनावों में परिवादवाद ने डूबोया कांग्रेस को
कांग्रेस भले ही मिशन 2013 की तैयारियों में लगी हो और प्रदश में जनचेतना यात्रा के जरिए भाजपा सरकार को घेरने का दंभ भर रही हो। लेकिन अब तक प्रदेश में हुये उपचुनावों में पार्टी की लुटिया परिवारवाद के चलते ही डूबी है। पार्टी को परिवारवाद के चलते ही कुक्षी,सोनकच्छ और जबेरा में हार का मुंह देखना पड़ा है। कांग्रेस नेत्री जमुना देवी के निधन के बाद कुक्षी में हुये उपचुनाव में पार्टी ने उनकी भतीजी निशा सिंगार पर दांव लगाया। लेकिन वह भाजपा उम्मीदवार मुकाम सिंह किराड़े से 16651 वोटों से पराजित हुई। कुक्षी कांग्रेस का परंपरागत गढ़ रहा है और यहॉ भाजपा ने 21 साल बाद पहली बार जीत दर्ज की। कांग्रेस का कुछ यही हाल जबेरा उपचुनाव में भी हुआ। यह सीट कांग्रेस विधायक रत्नेश सालोमन के निधन के बाद खाली हुई थी। जबेरा उपचुनाव में कांग्रेस ने रत्नेश सालोमन की बेटी डॉक्टर तान्या सालोमन को अपना उम्मीदवार बनाया। पार्टी को उम्मीद थी कि इस उपचुनाव में पार्टी को मतदाताओं की संवेदनाओं का फायदा मिलेगा। लेकिन परिणाम कांग्रेस की उम्मीद के उलट रहे। जबेरा में भाजपा के दशरथ सिंह लोधी ने कांग्रेस की डॉक्टर तान्या सालोमन को 11738 वोटों से हराया। सोनकच्छ उपचुनाव का नतीजा भी कुछ ऐसा ही रहा। सज्जन सिंह वर्मा के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद सोनकच्छ विधानसभा सीट खाली हुई। सोनकच्छ उपचुनाव में पार्टी ने सज्जन सिंह वर्मा के भतीजे अर्जुन वर्मा पर दांव लगाया। लेकिन वे भाजपा के राजेन्द्र वर्मा से 19 हजार वोटों से ये चुनाव हार गये। तीन उपचुनावों में परिवारवाद के चलते पार्टी की परंपरागत सीटें कांग्रेस के हाथ से निकल गई। महेष्वर में हो रहे चौथे उपचुनाव में पार्टी ने अपनी पुरानी गलतियों से कोई सबक नहीं लिया। पार्टी में एक बार फिर परिवारवाद का सिक्का चला है। यहॉ से पार्टी ने विजयलक्ष्मी साधौ के भाई देवेन्द्र साधौ को अपना उम्मीदवार बनाया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आखिर देवेन्द्र विजयलक्ष्मी साधौ और बलाई वोटरों की दम पर क्या कांग्रेस की यह सीट बरकरार रख पाते है।
साधौ को साधा कांग्रेस ने
महेश्वर को लेकर शुरू हुई पार्टी की जंग आखिरकार दिल्ली में खत्म हो गई। कांग्रेस आलाकमान ने यहॉ देवेन्द्र साधौ की उम्मीदवारी पर अपनी मुहर लगा दी। महेश्वर को लेकर विजयलक्ष्मी साधौ के भाई देवेन्द्र साधौ और पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरूण यादव के खास सुनील खांडे दावेदार थे। लेकिन महेश्वर में साधौ परिवार का दखल और विजयलक्ष्मी साधौ की पार्टी आलाकमान को दी गई चेतावनी कि अगर उनके भाई को टिकिट नहीं मिला तो वह खुद को चुनाव से दूर कर लेगी,आखिरकार काम आ गई। हालांकि अरूण यादव ने उपचुनावों में पार्टी की हार का कारण परिवारवाद को बताते हुये अपने खास सुनील खांडे की उम्मीदवारी को मजबूत किया था। लेकिन साधौ की नाराजगी और उनकी चेतावनी के चलते पार्टी ने उनके भाई देवेन्द्र साधौ को ही टिकिट देने में भलाई समझी। सूत्रों के मुताबिक विजयलक्ष्मी साधौ ने सोनिया के दरबार में देवेन्द्र की जीत की जबावदारी ली है। जिसके बाद देवेन्द्र को पार्टी की उम्मीदवारी मिली है।
मध्य प्रदेश में विधानसभा उपचुनावों में हार की हैट्रिक कर चुकी कांग्रेस के सामने अब अपनी नाक और पार्टी की साख बचाने की चुनौती है। मिशन 2013 की तैयारियों में लगी कांग्रेस की यह अग्निपरीक्षा है। पार्टी पिछले तीन उपचुनावों में अपनी परंपरागत सीटों से हाथ धो चुकी है। भाजपा ने बेहतर और कारगर रणनीति के जरिए कांग्रेसी किले ढहा दिये है और वह महेश्वर में भी कमल खिलाने के लिए जमीनी स्तर पर जुटी हुई है। तो वहीं महेश्वर में कांग्रेसी आपसी कलह और परिवारवाद के फेर में फंसे है। कई दिनों की माथापच्ची के बाद आखिरकार कांग्रेस हाईकमान ने महेश्वर के मैदान के लिए विजयलक्ष्मी साधौ के भाई देवेन्द्र साधौ को चुना है। हालांकि बुधवार देर रात तक दिल्ली दरबार में राष्ट्रीय सचिव और पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरूण यादव के समर्थक सुनील खांडे की मजबूत दावेदारी थी। लेकिन गुरूवार सुबह सोनिया गांधी के सचिव अहमद पटेल के हस्तक्षेप के बाद डॉक्टर विजयलक्ष्मी साधौ के भाई देवेन्द्र साधौ की दावेदारी पर पार्टी ने अपनी मुहर लगा दी।
उपचुनावों में परिवादवाद ने डूबोया कांग्रेस को
कांग्रेस भले ही मिशन 2013 की तैयारियों में लगी हो और प्रदश में जनचेतना यात्रा के जरिए भाजपा सरकार को घेरने का दंभ भर रही हो। लेकिन अब तक प्रदेश में हुये उपचुनावों में पार्टी की लुटिया परिवारवाद के चलते ही डूबी है। पार्टी को परिवारवाद के चलते ही कुक्षी,सोनकच्छ और जबेरा में हार का मुंह देखना पड़ा है। कांग्रेस नेत्री जमुना देवी के निधन के बाद कुक्षी में हुये उपचुनाव में पार्टी ने उनकी भतीजी निशा सिंगार पर दांव लगाया। लेकिन वह भाजपा उम्मीदवार मुकाम सिंह किराड़े से 16651 वोटों से पराजित हुई। कुक्षी कांग्रेस का परंपरागत गढ़ रहा है और यहॉ भाजपा ने 21 साल बाद पहली बार जीत दर्ज की। कांग्रेस का कुछ यही हाल जबेरा उपचुनाव में भी हुआ। यह सीट कांग्रेस विधायक रत्नेश सालोमन के निधन के बाद खाली हुई थी। जबेरा उपचुनाव में कांग्रेस ने रत्नेश सालोमन की बेटी डॉक्टर तान्या सालोमन को अपना उम्मीदवार बनाया। पार्टी को उम्मीद थी कि इस उपचुनाव में पार्टी को मतदाताओं की संवेदनाओं का फायदा मिलेगा। लेकिन परिणाम कांग्रेस की उम्मीद के उलट रहे। जबेरा में भाजपा के दशरथ सिंह लोधी ने कांग्रेस की डॉक्टर तान्या सालोमन को 11738 वोटों से हराया। सोनकच्छ उपचुनाव का नतीजा भी कुछ ऐसा ही रहा। सज्जन सिंह वर्मा के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद सोनकच्छ विधानसभा सीट खाली हुई। सोनकच्छ उपचुनाव में पार्टी ने सज्जन सिंह वर्मा के भतीजे अर्जुन वर्मा पर दांव लगाया। लेकिन वे भाजपा के राजेन्द्र वर्मा से 19 हजार वोटों से ये चुनाव हार गये। तीन उपचुनावों में परिवारवाद के चलते पार्टी की परंपरागत सीटें कांग्रेस के हाथ से निकल गई। महेष्वर में हो रहे चौथे उपचुनाव में पार्टी ने अपनी पुरानी गलतियों से कोई सबक नहीं लिया। पार्टी में एक बार फिर परिवारवाद का सिक्का चला है। यहॉ से पार्टी ने विजयलक्ष्मी साधौ के भाई देवेन्द्र साधौ को अपना उम्मीदवार बनाया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आखिर देवेन्द्र विजयलक्ष्मी साधौ और बलाई वोटरों की दम पर क्या कांग्रेस की यह सीट बरकरार रख पाते है।
साधौ को साधा कांग्रेस ने
महेश्वर को लेकर शुरू हुई पार्टी की जंग आखिरकार दिल्ली में खत्म हो गई। कांग्रेस आलाकमान ने यहॉ देवेन्द्र साधौ की उम्मीदवारी पर अपनी मुहर लगा दी। महेश्वर को लेकर विजयलक्ष्मी साधौ के भाई देवेन्द्र साधौ और पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरूण यादव के खास सुनील खांडे दावेदार थे। लेकिन महेश्वर में साधौ परिवार का दखल और विजयलक्ष्मी साधौ की पार्टी आलाकमान को दी गई चेतावनी कि अगर उनके भाई को टिकिट नहीं मिला तो वह खुद को चुनाव से दूर कर लेगी,आखिरकार काम आ गई। हालांकि अरूण यादव ने उपचुनावों में पार्टी की हार का कारण परिवारवाद को बताते हुये अपने खास सुनील खांडे की उम्मीदवारी को मजबूत किया था। लेकिन साधौ की नाराजगी और उनकी चेतावनी के चलते पार्टी ने उनके भाई देवेन्द्र साधौ को ही टिकिट देने में भलाई समझी। सूत्रों के मुताबिक विजयलक्ष्मी साधौ ने सोनिया के दरबार में देवेन्द्र की जीत की जबावदारी ली है। जिसके बाद देवेन्द्र को पार्टी की उम्मीदवारी मिली है।
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